Posts

Showing posts from January, 2017

दिल की बात दिल से दिल को बतानी है

Image
दिल की बात दिल से दिल को बतानी है दो पल की ये तेरी मेरी ज़िन्दगानी है पहले पल में हम तुम इक-दूजे की जान थे वंही दूजे पल हम तुमसे अंजान थे तू सागर के गर्भ की एक छोटी लहर और में दूर कंही एक किनारा माना तेरी मुझ तक पहुंच नही फिर भी इस दिल ने तुझे पुकारा तू चाहत रखना मुझ तक आने की में देख लूंगा जग सारा में सबसे जीता हूँ अब तक बस तेरी चाहत से हु में हारा ना में कंही गलत रहा और ना तुम्हारी कोई गलती रही में पत्तो की तरह बिखरता रहा और तू हवा सी चलती रही मेरा वजूद वंही रहा सिसकता रहा बिलखता रहा पर तू तेज हवा सी अपने आशियाने बदलती रही मुझे गम नही की तेरा आशियाना अब मुझसे दूर है बस सोचता हूं इस पागल दिल का क्या कसूर है सपने थे तुझ संग दुनिया बसाने के अब शायद में भी मजबूर हूँ और तू भी मजबूर है ये एक प्यार का नगमा है और मौजों की रवानी है हर टूटे दिल की होती एक कहानी है दिल की बात दिल से दिल को बतानी है दो पल की ये तेरी मेरी ज़िन्दगानी है दो पल की ये तेरी मेरी ज़िन्दगानी है

बचपन....एक याद

Image
कंचो की होड़ में , दोस्तों के साथ भागदौड़ में बचपन रहता था बस चीज़ों की तोड़ फोड़ में कुछ खेल हुवा करते थे...बर्फी,सीढ़ी और डमरू भूतों की सुन लेते अगर कहानी तो कांप जाती थी रूह बड़े उठाते गोद में, हम हंसकर आसमां छूआ करते थे याद होगा शायद सबको एक टॉफी के लिए भी रूठा करते थे न्यू पेंसिल रब्बर मानो एक मैडल सा लगता था और सुबह उठकर स्कूल जाना एक सजा सा लगता था दिवाली पर पकोड़ो की महक और होली पर बिखरे हुए रंग अब याद आती है सक्रान्त कि वो घेवर-फिनी और डोर पतंग राखी पर छोटी छोटी कलाइयों पर मोटी मोटी राखियां झूम उठते थे , चाहे दूर ही, क्यों ना बजी हो ,शहनाइयां दस तक गिनना होता था और हम सब छुप जाते थे पकड़म-पकड़ाई में बड़ी मुश्किल से हाथ आते थे धाक थी अपनी उस वक्त अपनी ना कोई कुछ कह पाता था थोड़ी आँख भिगो लेते तो जो मांगो वो आता था रस्ते पर पड़ा पत्थर मानो एक फुटबॉल सा लगता था उसको घर तक पहुँचाना फाइनल गोल सा लगता था राम-सीता और खाता हूं-पिता हूँ के मुक्के जब लगते थे दर्द तो होता होगा पर वो मीठे लगते थे उमर का पता नही बस लोग उसे बचपन कहते है काम धाम कुछ रहता नहीं बस सब खेलते रहते है ना