Moment Of Life - 3
सुबह की वो गुलाबी लाली...और बचपन की वो चंचल छाया
पूरे जंहा में ना मिला वो नूर,जो तेरे चेहरे में मैने पाया
में ढूंढता रहा तुझे,जैसे हिरण ढूंढे कस्तूरी को
पर तु था कि कमबख्त मेरे दिल मे था समाया
कभी जुगनुओं की रोशनी में तेरे अक्श को ढूंढने के अरमान थे
तो कभी पूर्णिमा की चांदनी में,मेने तेरे नाम लिखे पैगाम थे
मेरी चोखट पर हर रोज वो परिंदा आके तेरी यादे ले जाता था
इस बात का सबूत उसके गालो पर आंसुओ से पड़े निशां थे
हर रोज गुजरता था वो आशिक़ तेरी गलियों से,पाने को तेरा दीदार
पर धोखा दे देती थी तेरे घर की ऊंची ऊंची सीढियां ओर वो ऊंची ऊंची दीवार
कभी कभी दिख जाती थी मुझको इतराती मेरी गुड़िया....
वो प्यारी सी मुस्काहट और उड़ती जुल्फ़े जिन्हें देख हर किसी को हो जाता प्यार
खोलूं जो किताब मेरी ज़िंदगी की तो हर एक पन्ने में तेरा ज़िक्र पाऊंगा
गर...कुछ चाहत हो पाने की तो मांग लेना,में तारा बन कर टूट जाऊंगा
ये जिंदगी मुमकिन नही, मालूम है मुझे, मिलने को....
अगली ज़िन्दगी में देखना खुद अपने हाथों से तुझे अपना लिखा लाऊंगा
में खुद अपने हाथों से तुझे अपना लिखा लाऊंगा ।

Comments
Post a Comment