यूँ फैली है चारों तरफ वो...मुझको मुझसे चुरा लेती है!!!

ये फिजाओं की गुस्ताखियां दिल को खंगाल देती है
उसकी नजरो की मदमस्तियाँ मुझको संवार देती है
यूँ फैली है चारों तरफ यादें उसकी
में बांहे भी फैलाऊँ तो वो(यादें) गले लगा लेती है ।

कि मासूम सी वो ख्वाबों का आशियाँ बना लेती है
अपनी ख्वाहिशो को वो बड़े प्यार से खुद में समा लेती है
यूँ फैली है चारों तरफ होशियारी उसकी
में छुपना भी चाहूं तो वो दिल मे छुपा लेती है

कि देखे जो कोई घूरकर, वो पलके झुका लेती है
आसमानों में रहती है,पर जमीं पर ही सो जाती है
यूँ फैली है चारो तरफ सादगी उसकी
में भूखा रह जाउँ तो वो पगली खुद भी नही खाती है।

जो गुजरे वो किसी बाग से,फूलों में रंग भर जाती है
गर..मायूस हो मन, तो उसे शहर कर जाती है
यूँ फैली है चारो तरफ खुशबू उसकी
में आंखे बंद भी करलू तो ख्यालों में आ जाती है ।

खुद से बाते करती है और खुद में खो जाती है
वो चंचल नटखट पागल लड़की बड़ी याद आती है
यूँ फैली है चारों तरफ नादानियां उसकी
में रोना भी चाहूं तो वो पगली , हंसा जाती है
हंसा जाती है , हंसा जाती है...वो पगली 

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