Neend : नींद

ना चाहो तो भी आ जाती थी
रूठा हुवा हो या टूटा हुवा
सब कुछ वो पल में भुला जाती थी ।
पर आज,
आज वो कोने में छुप कर
मुझसे नाराज़ बेठी है ।
कोई बताएगा !
ये रूठी हुई नींद को केसे मनाते है ?

जब होते थे यार दोस्त मेरे
पास मेरे ।
ना जाने क्यूँ शर्मा के भाग जाया करती थी ।
और जब होता मैं अकेला ,
चुपके से आकर गले, मेरे लग जाया करती थी ।
पर आज
आज अकेला हूँ  फिर भी वो
मुझसे नाराज़ बैठी है ।
कोई बताएगा !
ये रूठी हुई नींद को केसे मनाते है ?

वो जिससे भी मिलती थी
वो उसका ही हो जाता था
बग़ैर उसके कोई ना रह पाता था
तुम्हें भी तो वो बहुत पसन्द थी ना
तुम भी तो जब मन किया तब
उसके आग़ोश में चले जाते थे
फिर आज
आज कँहा है वो ?
क्या तुमसे भी वो नाराज़ है ?
क्या तुम भी यूँही बेवजह रातों को
जागते हुए
उसके आने का इंतज़ार करते हो ?
नींद
हाँ नींद ! जो तुम्हें ख़्वाब दिखाती है ।
जो तुम्हें जीना सिखाती है ।
आज
आज वो मुझसे , तुमसे , हम सबसे नाराज़ बैठी है ।
कोई बताएगा !
ये रूठी हुई नींद को केसे मनाते है ?

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